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लखनऊ में आयोजित हुई एक दिवसीय शोध कार्यशाला


 

लखनऊ। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद अवध प्रांत के शोध कार्य आयाम एवं दिन दयाल उपाध्याय शोध पीठ,समाज कार्य विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में आज लखनऊ विश्वविद्यालय के राधाकमल मुकर्जी सभागार में एक दिवसीय शोध कार्यशाला आयोजित हुई ।

जिसके उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में IIIT के डायरेक्टर डॉ० अरुण मोहन शेरी,मुख्य वक्ता के रूप अभाविप के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो० राज शरण शाही, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे समाज कार्य विभाग के अध्यक्ष प्रो०राकेश द्विवेदी व अभाविप अवध प्रांत के शोध कार्य प्रमुख डॉ० जितेंद्र कुमार शुक्ला,व संयोजक तान्या तिवारी ने युवाओं के प्रेरणाश्रोत स्वामी विवेकानंद व ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्वलित कर कार्यशाला का उद्घाटन किया।

 

कार्यशाला चार सत्रों में विभाजित हुई किसके प्रथम सत्र में डायरेक्टर प्रो०अरुण मोहन शेरी के कार्यशाला में विभिन्न जिलों से प्रतिभाग कर रहे शोध के छात्र एवं छात्राओं को संबोधित करते हुए शिक्षण संस्थानों की सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों के बारे में 3के फॉर्मूला में तीन बिंदुओं को बताते हुए 1ज्ञान का सृजन

2 ज्ञान का प्रभाव 3. ज्ञान का प्रमाण

विश्वविद्यालय में मुख्य कार्य का फार्मूला दिया।

 

प्रो०शेरी ने रिशर्च में एआई की उपयोगिता एवं 1955 से एआई का विकास,पेपर टू पर्पस,पोस्ट ऑफिस प्रोटोकॉल,गुड आब्जर्वर,प्रॉब्लम टू ऑपर्च्युनिटी,तथा शोध के उद्देश्य एवं सार्थकता पर प्रकाश डाला,

मुख्य वक्ता अभाविप के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो० राज शरण शाही ने एप्लीकेशन ऑफ नॉलेज,पूर्व ज्ञान की भ्रांतियों को दूर करना भी शोध का उद्देश्य है,समाज के समस्याओं का डाटा बैंक,नेशनल कमिटमेंट,मनुष्य के उत्थान हेतु शोध जैसे तमाम बिंदुओं पर प्रकाश डाला।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो०राकेश द्विवेदी ने शोध के मानक एवं स्वयं से समाज की ओर शोध पद्धति की वैधता तथा वैधता के टूल्स एवं प्रकाशन पर बल दिया।

 

द्वितीय सत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय कंप्यूटर साइंस विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ०पुनीत मिश्रा ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उद्भव और उसका वास्तविक दुनिया में प्रयोग के बारे में छात्रों को बताया, डॉ० मिश्रा ने रिसर्च को प्याज का उद्धरण देकर बात करते हुए कहा कि जितना अंदर जाओगे उतना ही निचोड़ मिलता रहेगा। एआई और टूल्स के बारे में बताते हुए कहा कि मानव के विकास द्वारा मानव मशीनीकृत होता जा रहा है।हमारा दिमाक कैसे काम करता है? क्या नॉन ह्यूमन में भी दिमाक है,जैसे तमाम तर्क पर प्रकाश डाला।

 

तृतीय सत्र में ल. वि.वि लाइब्रेरी साइंस के विभागाध्यक्ष प्रो०व्रवीश प्रकाश ने एवं अभाविप अवध प्रांत की उपाध्यक्ष प्रो०मंजुला उपाध्याय ने लिया जिसमें चर्चा की जैसे किसी और के काम, विचारों, या शब्दों को बिना उचित श्रेय दिए या स्रोत का उल्लेख किए बिना अपना बताकर इस्तेमाल करना जैसे बिंदुओं पर चर्चा हुई ।अनजाने में साहित्यिक चोरी: यह तब हो सकता है जब आप गलती से किसी स्रोत का उल्लेख करना भूल जाते हैं या किसी और के विचार को अपने विचार के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं।

 

गलत पैरेफ्रेशिंग: किसी के विचार को अपने शब्दों में लिखते समय उसका मूल अर्थ बदल देना, जब आप समझ में त्रुटि के कारण ऐसा करते हैं।

 

चौथे एवं समापन सत्र को अभाविप पूर्वी क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री घनश्याम शाही एनबीआरआई के डायरेक्टर डॉ०अजीत साहनी अभाविप अवध प्रांत की अध्यक्ष डॉ० नीतू सिंह,प्रांत संगठन मंत्री अंशुल विद्यार्थी ने लिया जिसमें वक्ताओं ने कहा शोध, ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक व्यवस्थित और गहन जांच है, जिसमें नई जानकारी खोजना या मौजूदा ज्ञान का पुनर्मूल्यांकन करना शामिल है।

 

यह एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जो निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए डेटा एकत्र करने, उसका विश्लेषण करने और उसकी व्याख्या करने पर आधारित है। शोध को “ज्ञान की खोज” या “विधिवत गवेषण” भी कहा जाता है, और यह विभिन्न क्षेत्रों में लागू होता है। शोध की मुख्य बातें

व्यवस्थित प्रक्रिया: शोध एक संरचित दृष्टिकोण का पालन करता है, जिसमें समस्या की पहचान करने से लेकर निष्कर्ष निकालने तक के चरण शामिल होते हैं।

 

ज्ञान की खोज: इसका मुख्य उद्देश्य नया ज्ञान प्राप्त करना, अज्ञात तथ्यों को खोजना या मौजूदा सिद्धांतों की पुष्टि करना या उनका परीक्षण करना है।

विश्लेषण और विश्लेषण: शोधकर्ता इकट्ठा किए गए आंकड़ों और तथ्यों का सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं ताकि निष्कर्ष निकाले जा सकें। वस्तुनिष्ठता: शोध का लक्ष्य वस्तुनिष्ठ होना है, यानी पूर्वाग्रहों या व्यक्तिगत राय से मुक्त होकर साक्ष्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालना।

 

पुनरावृत्ति: एक स्पष्ट शोध पद्धति अन्य शोधकर्ताओं को समान परिस्थितियों में अध्ययन को दोहराने की अनुमति देती है, जिससे निष्कर्षों की पुष्टि होती है।

विस्तृत अनुप्रयोग: शोध मनोविज्ञान, विज्ञान, शिक्षा, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है।

इस एक दिवसीय आयोजित कार्यशील में अवध प्रांत के 10 से अधिक जिलों से आए हुए शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया। जिसमें अभाविप अवध प्रांत के प्रदेश मंत्री पुष्पेंद्र बाजपेई,पुष्पा गौतम,विकास तिवारी,लक्ष्मी पांडे,अदिति पॉल,सरिता पाण्डेय,आशुतोष श्रीवास्तव, विराट पांडेय,अंकुर अवस्थी,अभिषेक सिंह,सहित तमाम छात्र एवं छात्राएं उपस्थित रही।

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